शनि प्रदोष व्रत आज: पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और उपाय जानें, एस्ट्रोलॉजी समाचार

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शनि प्रदोष व्रत का महत्व और पूजा विधि

शनि प्रदोष व्रत: धार्मिक महत्व और पूजा विधि

हिंदू धर्म में उपवास और व्रत का विशेष महत्व होता है। इनमें से एक महत्वपूर्ण व्रत है प्रदोष व्रत, जिसे भगवान शिव की आराधना के लिए रखा जाता है। यह व्रत हर महीने की त्रयोदशी तिथि को आता है, और यह दो बार होता है – एक बार कृष्ण पक्ष में और दूसरी बार शुक्ल पक्ष में। जब त्रयोदशी शनिवार के दिन आती है, तब इसे शनि प्रदोष कहा जाता है। इस दिन भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के साथ-साथ शनिदेव के अशुभ प्रभाव को कम करने की भी मान्यता है। इस वर्ष आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि **4 अक्टूबर, शनिवार** को है, जो इस दिन की पूजा को विशेष रूप से शुभ बनाती है।

शनि प्रदोष व्रत का मुहूर्त

  • त्रयोदशी तिथि प्रारंभ: 4 अक्टूबर 2025, शाम 05:09 बजे
  • त्रयोदशी तिथि समाप्त: 5 अक्टूबर 2025, दोपहर 03:03 बजे
  • प्रदोष पूजा मुहूर्त: शाम 06:24 बजे से 08:49 बजे तक
  • अवधि: 2 घंटे 25 मिनट

पूजा विधि

व्रत के दिन, श्रद्धालुओं को सुबह स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। इसके बाद, घर के मंदिर या पूजा स्थल को साफ करके, भगवान शिव और माता पार्वती सहित पूरे शिव परिवार की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। पूजा की शुरुआत घी का दीपक जलाकर करें और फूल, धूप, फल, और नैवेद्य अर्पित करें। इसके बाद “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करते हुए भगवान शिव की आरती उतारें।

संध्या समय प्रदोष मुहूर्त में पुनः स्नान करके शिव मंदिर जाएं। वहां शिवलिंग पर जल, बेलपत्र, आक का फूल, धतूरा, भांग, शहद, और गन्ना चढ़ाएं। इसके बाद, शनि प्रदोष व्रत की कथा सुनें और अंत में क्षमा याचना करें। पूजा के बाद, पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाकर शनिदेव की आराधना करें।

शनि प्रदोष के विशेष उपाय

  • जलाभिषेक: तांबे के लोटे में जल भरकर उसमें काला तिल और शमी पत्र मिलाकर शिवलिंग पर अर्पित करें और शिव चालीसा का पाठ करें। यह उपाय शनि दोष को कम करने में सहायक होता है।
  • बेलपत्र अर्पण: इस दिन शिवलिंग पर 108 बेलपत्र चढ़ाना विशेष रूप से शुभ माना जाता है। साथ ही, उड़द की दाल, काले वस्त्र, जूते-चप्पल, और शनिदेव से जुड़ी वस्तुओं का दान भी लाभकारी होता है।
  • शनिदेव की आराधना: शनि प्रदोष के दिन शनिदेव की पूजा अवश्य करनी चाहिए।
  • हनुमान जी की पूजा: इस दिन हनुमान चालीसा का पाठ करना भी शुभ माना जाता है, जो शनि दोष और नकारात्मक प्रभावों को कम करता है।

शनि प्रदोष व्रत का महत्व

धार्मिक मान्यता के अनुसार, प्रदोष व्रत रखने से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इस व्रत के माध्यम से मानसिक शांति, पारिवारिक सुख, और आर्थिक उन्नति की प्राप्ति होती है। विशेषकर, शनिदोष, साढ़ेसाती या ढैय्या से पीड़ित जातकों के लिए यह व्रत अत्यंत लाभकारी माना जाता है। कहा जाता है कि इस दिन की गई पूजा से जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं और कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।

कथाएं और मान्यताएं

प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा करने की मान्यता का आधार पुराणों में मिलता है। एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के समय जब विष निकला, तब भगवान शिव ने प्रदोष काल में ही उसे ग्रहण कर संसार की रक्षा की थी। तभी से इस समय उनकी विशेष पूजा का महत्व बढ़ गया। शनि प्रदोष व्रत की मान्यता है कि इसे करने वाले भक्तों को शनि ग्रह के दुष्प्रभाव से मुक्ति मिलती है और उनके जीवन में सुख-समृद्धि आती है।

व्रत के नियम

व्रत वाले दिन सात्विक भोजन करें और अनावश्यक क्रोध या नकारात्मक विचारों से बचें। शाम को प्रदोष मुहूर्त में शिव मंदिर जाकर विशेष पूजा करें। व्रत कथा सुनना और “ॐ नमः शिवाय” का जाप करना अनिवार्य है। इसके साथ ही, दान और सेवा के कार्य अवश्य करें।

शनि दोष से मिलती है मुक्ति

इस दिन व्रत रखने और पूजन करने से शनि दोष का निवारण होता है। मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन में संतुलन और स्थिरता आती है। यदि आप शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या से गुजर रहे हैं या आपके जीवन में बाधाएं लगातार आ रही हैं, तो इस व्रत को श्रद्धा और नियमपूर्वक करने से आपको निश्चित ही लाभ होगा।


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