सनातन धर्म में शिखा और चोटी रखने की परंपरा का महत्व और उसमें गांठ बांधने का कारण क्या है?

सनातन धर्म में शिखा का महत्व सनातन धर्म में शिखा का महत्व और उसकी परंपरा सनातन … सनातन धर्म में शिखा और चोटी रखने की परंपरा का महत्व और उसमें गांठ बांधने का कारण क्या है?Read more

सनातन धर्म में शिखा का महत्व

सनातन धर्म में शिखा का महत्व और उसकी परंपरा

सनातन धर्म में शिखा, जिसे चोटी भी कहा जाता है, रखने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। यह परंपरा न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि हमारे जीवन में एक गहरी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व रखती है। शिखा का महत्व भारतीय संस्कृति में एक अंकुश के समान है, जो हमारे आदर्शों और सिद्धांतों को दर्शाती है। यह हमारे मानसिक और आध्यात्मिक विकास का प्रतीक है और यह हमारे जीवन को दिशा प्रदान करती है।

शिखा का स्थान हमारे शरीर में एक महत्वपूर्ण मस्तिष्क केंद्र से जुड़ा हुआ है, जिसे ‘अधिपति’ मर्मस्थल कहा जाता है। यह मस्तिष्क का हृदय माना जाता है, जहाँ ब्रह्मरंध्र, द्विदलीय आज्ञाचक्र और पीनियल ग्लैंड से संपर्क जोड़ने वाली नाड़ियाँ मिलती हैं। इन नाड़ियों का सही संतुलन बनाए रखने के लिए शिखा का होना आवश्यक है। यह संतुलन न केवल शारीरिक स्वास्थ्य को बनाए रखता है, बल्कि ध्यान और योग में भी सहायता प्रदान करता है।

शिखा का आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व

शिखा रखने से नाड़ियों का संतुलन बना रहता है और इससे शरीर व मन पर नियंत्रण स्थापित होता है। जब हम शिखा रखते हैं, तो इस स्थान पर बालों का भंवर उन चेतना केंद्रों तक जाता है, जिसके कारण हम बुद्धिमान और मनस्वी बनते हैं। हमारे ऋषियों ने इस मर्मस्थल की पहचान और सुरक्षा के लिए शिखा रखने का विधान बनाया है। यह केवल एक साधारण परंपरा नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन के कई महत्वपूर्ण पहलुओं से जुड़ी हुई है।

कात्यायनस्मृति में कहा गया है:

सदोपवीतिना भाव्यं सदा बद्धशिखेन च।

विशिखो व्युपवीतश्च यत्करोति न तत्कृतम्॥

इसका अर्थ है कि बिना शिखा के किए गए यज्ञ, दान, तप और व्रत जैसे शुभ कर्म निष्फल हो जाते हैं। यह स्पष्ट करता है कि शिखा का होना हमारे धार्मिक कार्यों और अनुष्ठानों के लिए कितना आवश्यक है।

शिखा का उपयोग और पूजा-पाठ में महत्व

स्नान, दान, जप, होम, संध्या और देव पूजा के समय शिखा में गांठ लगाना अनिवार्य है। कात्यायन के अनुसार:

शिखा ग्रंथि विना कर्म न कुर्यात् वै कदाचन॥

इसका अर्थ है कि शिखा में गांठ लगाए बिना कोई भी शुभ कर्म नहीं करना चाहिए। यह गांठ मस्तिष्क की ऊर्जा तरंगों को बाहर नहीं निकलने देती है। इसके अंतर्मुखी होने से मानसिक शक्तियों का पोषण होता है, जिससे सद्बुद्धि, सद्विचार, आत्मशक्ति और शारीरिक शक्ति का संचार होता है। इसके साथ ही, यह अनिष्टकारी प्रभावों से हमारी रक्षा भी करती है।

शिखा रखने की परंपरा का सांस्कृतिक महत्व

शिखा रखने की परंपरा केवल धार्मिक या आध्यात्मिक महत्व नहीं रखती, बल्कि यह हमारे सांस्कृतिक धरोहर का भी एक हिस्सा है। यह हमारी पहचान और परंपरा को बनाए रखने में मदद करती है। शिखा का यह विधान हमें याद दिलाता है कि हम अपने आदर्शों और सिद्धांतों को न केवल अपने जीवन में अपनाएं, बल्कि उन्हें अपने बच्चों में भी संजोएं। यज्ञ और दान जैसे कार्यों के समय शिखा का होना हमें एक सकारात्मक मानसिकता के साथ कार्य करने की प्रेरणा देता है।

इस प्रकार, शिखा रखना न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह हमारे मानसिक और आध्यात्मिक विकास का एक महत्वपूर्ण साधन है। यह हमें हमारे अस्तित्व के गहरे अर्थ से जोड़ती है और जीवन के अनेक पहलुओं को समझने में मदद करती है।

(पुस्तक महल से)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Exit mobile version