आपको पता है कृष्ण और शुक्ल पक्ष में क्या होता है अंतर?

आपको पता है कि हिंदू पंचांग के अनुसार महीनों की गणना सूर्य और चंद्रमा की गति के आधार पर की जाती है। हर महीने को दो हिस्सों में बांटा जाता है। आइए इस लेख में इस गणना के बारे में विस्तार से जानें।

Table of Contents

  1. परिचय – पंचांग में पक्षों का महत्व
  2. कृष्ण पक्ष क्या है?
  3. कृष्ण पक्ष का धार्मिक महत्व
  4. शुक्ल पक्ष क्या है?
  5. शुक्ल पक्ष का धार्मिक महत्व
  6. कृष्ण और शुक्ल पक्ष में अंतर
  7. दोनों पक्षों से जुड़ी पौराणिक कथा
  8. निष्कर्ष – जीवन में पक्षों का महत्व

हिंदू धर्म में तिथियों और मुहूर्तों का विशेष महत्व होता है। किसी भी शुभ कार्य या धार्मिक अनुष्ठान का निर्धारण पंचांग देखकर किया जाता है। पंचांग, जिसे हिंदू कैलेंडर भी कहा जाता है, चंद्रमा की गति पर आधारित होता है। इसमें प्रत्येक महीने को दो हिस्सों में बांटा जाता है, एक शुक्ल पक्ष और दूसरा कृष्ण पक्ष। हर पक्ष में 15-15 दिन होते हैं और दोनों का अपना अलग महत्व, गुण और धार्मिक दृष्टिकोण है।

कृष्ण पक्ष क्या है?

पूर्णिमा के बाद से शुरू होकर अमावस्या तक चलने वाले 15 दिनों के काल को कृष्ण पक्ष कहा जाता है। इस अवधि में चंद्रमा की कलाएं घटती हैं और उसके प्रकाश में कमी आने लगती है।

  • मान्यता है कि इस समय शुभ और मांगलिक कार्यों से परहेज करना चाहिए।
  • इस अवधि की रातें बाकी समय से अंधेरी होती हैं, इसलिए इसे आत्मनिरीक्षण और साधना का समय माना गया है।

कृष्ण पक्ष की तिथियां प्रतिपदा से चतुर्दशी तक 15 दिन तक होती हैं। इसके अंत में अमावस्या होती है।

शुक्ल पक्ष क्या है?

अमावस्या के अगले दिन से प्रारंभ होकर पूर्णिमा तक चलने वाले 15 दिनों के काल को शुक्ल पक्ष कहा जाता है। इस दौरान चंद्रमा की कलाएं बढ़ती हैं और उसकी रोशनी में निरंतर वृद्धि होती है।

  • शास्त्रों के अनुसार यह पक्ष शुभ कार्यों, व्रत, पूजा और मांगलिक अवसरों के लिए सर्वश्रेष्ठ है।
  • अमावस्या की अंधेरी रात से लेकर पूर्णिमा की उज्ज्वल चांदनी तक यह समय सकारात्मक ऊर्जा से भरा माना जाता है।

शुक्ल पक्ष की तिथियां प्रतिपदा से चतुर्दशी तक 15 दिन तक होती हैं और अंत में पूर्णिमा होती है।

दोनों पक्षों से जुड़ी हैं पौराणिक कथाएं-

कृष्ण पक्ष की शुरुआत के लिए कहा जाता है कि प्रजापति दक्ष ने अपनी 27 पुत्रियों का विवाह चंद्रमा से किया था। लेकिन चंद्रमा का प्रेम रोहिणी के प्रति अधिक था और वे अन्य पत्नियों की उपेक्षा करने लगे। इससे क्रोधित होकर दक्ष ने चंद्रमा को क्षय रोग का शाप दिया, जिसके प्रभाव से उनका तेज क्षीण होने लगा। यही क्रम कृष्ण पक्ष के रूप में माना गया।

वहीं, क्षय रोग से ग्रसित चंद्रमा ने भगवान शिव की आराधना की। शिवजी ने प्रसन्न होकर उन्हें अपने मस्तक पर स्थान दिया और उनका तेज पुनः लौट आया। लेकिन दक्ष का शाप टाला नहीं जा सकता था, इसलिए उसे परिवर्तित करते हुए यह व्यवस्था हुई कि चंद्रमा हर 15 दिन घटेगा और फिर अगले 15 दिन बढ़ेगा जिसे शुक्ल पक्ष कहा गया।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

Q1. कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में क्या अंतर है?
कृष्ण पक्ष अमावस्या तक का समय है जिसमें चंद्रमा घटता है, जबकि शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तक का समय है जिसमें चंद्रमा बढ़ता है।

Q2. किस पक्ष में शुभ कार्य करना अच्छा माना जाता है?
शुक्ल पक्ष को शुभ कार्य, व्रत और मांगलिक कार्यों के लिए श्रेष्ठ माना जाता है।

Q3. कृष्ण पक्ष में क्या करना चाहिए?
कृष्ण पक्ष में ध्यान, साधना, आत्मनिरीक्षण और पितृ कार्य करना शुभ माना जाता है।

Q4. शुक्ल पक्ष में कौन से व्रत या त्यौहार आते हैं?
शुक्ल पक्ष में एकादशी, पूर्णिमा व्रत और कई महत्वपूर्ण त्यौहार मनाए जाते हैं।

Q5. क्या दोनों पक्ष धार्मिक दृष्टि से समान रूप से महत्वपूर्ण हैं?
हां, दोनों पक्ष महत्वपूर्ण हैं। कृष्ण पक्ष आध्यात्मिक साधना के लिए और शुक्ल पक्ष शुभ व्रत एवं उत्सव के लिए उपयुक्त है।

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