इस बार नवरात्रि बेहद खास हुई है। इस बार जो तिथि पड़ी थी, उसके हिसाब से नवरात्रि 9 नहीं, बल्कि 10 दिन के होने हैं। आइए जानें कि इस बार अष्टमी और नवमी कब होगी।
हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल शारदीय नवरात्रि आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से आरंभ होती है। मां दुर्गा और उनके नौ रूपों की आराधना के ये दिन भक्तों के लिए अत्यंत मंगलकारी माने जाते हैं। आमतौर पर नवरात्रि नौ दिनों की होती है, लेकिन इस बार भक्तों को माता की पूजा और साधना का अवसर एक दिन अधिक मिलेगा।
वर्ष 2025 में शारदीय नवरात्रि का शुभारंभ 22 सितंबर, सोमवार को प्रतिपदा तिथि से हो चुका है। मां दुर्गा की प्रतिमाएं पंडालों और घरों में स्थापित हो गई है और पूजा-अर्चना कर मां से अपनी मनोकामनाएं मांगी जा रही हैं। ऐसे में ज्योतिषाचार्य ने बताया कि 10 दिन के नवरात्रि होने के कारण अष्टमी और नवमी की तिथि कब पड़ रही हैं।
इस बार क्यों हैं 10 दिन की नवरात्रि?
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार इस बार तिथियों के कारण नवरात्र 9 नहीं बल्कि पूरे 10 दिनों तक होंगे। श्राद्ध पक्ष के दौरान एक तिथि लुप्त हो जाने और चतुर्थी तिथि के दो दिन पड़ने की वजह से नवरात्रि की अवधि बढ़ गई है। इसे अत्यंत शुभ योग माना गया है और कहा जाता है कि ऐसे समय में की गई आराधना से भक्तों को विशेष फल प्राप्त होता है।
अष्टमी और नवमी की तिथि- Kab hai Ashtami aur Navami
पंचांग के अनुसार, दुर्गाष्टमी तिथि का प्रारंभ- 29 सितंबर 2025, सोमवार, शाम 04:31 बजे होगा और इसका समापन 30 सितंबर 2025, मंगलवार, शाम 06:06 बजे होगा।
वहीं, महानवमी तिथि का प्रारंभ, 30 सितंबर 2025, मंगलवार, शाम 06:06 बजे होगा। इसका समापन 1 अक्टूबर 2025, बुधवार, शाम 07:01 बजे होगा, इसलिए महानवमी का पर्व 1 अक्टूबर 2025 को मनाया जाएगा।
इसके बाद 2 अक्टूबर, गुरुवार को पूरे देश में विजयादशमी या दशहरा का पर्व मनाया जाएगा। इस दिन रावण दहन की परंपरा निभाई जाती है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
अष्टमी और नवमी का विशेष महत्व
अष्टमी तिथि पर मां दुर्गा के महागौरी रूप की पूजा की जाती है। इस दिन विशेष रूप से कन्या पूजन और संधि पूजन का विधान होता है। कहा जाता है कि संधि काल में पूजा करने से देवी की कृपा से सभी दुखों का नाश होता है।
महानवमी पर देवी दुर्गा के सिद्धिदात्री रूप की आराधना की जाती है। इसे विजय और धर्मबल का प्रतीक माना जाता है। इस दिन होम, हवन, आयुध पूजन और देवी आराधना का विशेष फल मिलता है।