शरद पूर्णिमा कब है: मां कोजागरी लक्ष्मी व लक्खी पूजा का महत्व

इस साल 6 अक्टूबर को सोमवार को शरद पूर्णिमा का पर्व मनाया जाएगा। इस दिन मां कोजागरी लक्ष्मी की पूजा और लक्खी पूजा का आयोजन बड़े धूमधाम से किया जाता है। पारंपरिक रीति-रिवाजों के अनुसार, विवाहित महिलाएं इस दिन व्रत रखकर अपने परिवार की सुख-समृद्धि और उन्नति के लिए मां लक्ष्मी की आराधना करती हैं। पंडित जयप्रकाश पांडेय शास्त्री के अनुसार, इस दिन रात में घी का दीपक जलाकर महालक्ष्मी का पूजन करने का विधान है।
शरद पूर्णिमा की रात को मां लक्ष्मी घर-घर घूमती हैं और रात्रि जागरण कर पूजन करने वाले भक्तों को सुख-समृद्धि प्रदान करती हैं। इस अवसर पर बनाई गई खीर, जो अमृतवर्षा से सिक्त होती है, अगले दिन प्रात: प्रसाद स्वरूप ग्रहण करने से धन, ऐश्वर्य और बल में वृद्धि होती है। इस दिन 100 दीपक जलाने का महत्व होता है, जिससे घर में सुख और शांति का माहौल बना रहता है।
पश्चिम बंगाल के कई क्षेत्रों, जैसे बोकारो से सटे गांवों में भी इस पर्व को विशेष धूमधाम से मनाया जाता है। यहां हर गांव और घर में मां लक्खी की पूजा की जाती है। स्थानीय मंदिरों में विधि-विधान से मां की मूर्ति स्थापित की जाती है और ग्रामीण विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं। चंदनकियारी, कसमार, और चास जैसे स्थानों पर हर साल शरद पूर्णिमा के अवसर पर मां की पूजा की जाती है। चंदनकियारी में, हर दशक से बांग्ला यात्रा का आयोजन होता है, जिसमें लोग मां की आराधना करने के बाद बांग्ला यात्रा का आनंद लेते हैं।
कैसे करें कोजागिरी पूर्णिमा पूजा
कोजागिरी पूर्णिमा के अवसर पर पूजा की विधि में स्नान करने के बाद स्वर्ण, रजत या मिट्टी के कलश स्थापित करना आवश्यक है। इसके बाद मां लक्ष्मी की स्वर्णमयी प्रतिमा को लाल वस्त्र में लपेटकर कलश के ऊपर स्थापित करें। पूजा के दौरान भजन, कीर्तन और जागरण का आयोजन अवश्य करना चाहिए। चंदनकियारी में इस बार प्रसिद्ध नीलाम होलो सिथेर सिंदूर बांग्ला यात्रा का आयोजन किया जाएगा, जिसमें पश्चिम बंगाल के प्रसिद्ध कलाकार भाग लेंगे।
त्योहार का महत्व
ओडिशा में, शरद पूर्णिमा को कुमार पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है, क्योंकि इस दिन भगवान शिव के पुत्र कुमार कार्तिकेय का जन्म हुआ था। गुजराती समुदाय के लोग भी इस दिन को शरद पूर्णिमा के रूप में मनाते हैं। वहीं, मराठी समुदाय में इस पर्व को परिवार के जेष्ठ संतान को सम्मानित करने की परंपरा के रूप में देखा जाता है। बंगाली समुदाय में इसे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, जहां लोग रातभर जागकर मां लक्ष्मी की आराधना करते हैं।